बलिया अगस्त क्रांति 1942
डाकघर के साथ मालगोदाम का अनाज लूटा, जहाज को पानी में बहाया
बलिया अगस्त क्रांति 1942
डाकघर के साथ मालगोदाम का अनाज लूटा, जहाज को पानी में बहाया
कहीं पुल तो कहीं सड़क क्षतिग्रस्त कर आवागमन भी किया बाधित
एनडी राय
बलिया। सन 1942 का आंदोलन जिले में शबाब पर था और युवाओं का जगह-जगह हंगामा भी जारी था। पुलिस भी अपने को अब असुरक्षित महसूस कर रही थी। शहर में लगातार चल रहा आंदोलन भी आज एक बार फिर जाग उठा। रेवती-फेफना के बीच चल रही आजाद बलिया की बिना टिकट वाली ट्रेन जब बलिया पहुंची तो हजारों छात्र शहर में आ गए। इसी में से आठ-दस लोगों को रेलवे पुलिस ने पकड़ लिया। इसको लेकर छात्र आक्रोशित हुए तो शहर की जनता भी उनके साथ हो गई। इसके बाद करीब 500 लोगों का जत्था जहाज घाट (वर्तमान में बालेश्वर घाट) स्टेशन पर पहुंचा और स्टेशन में आग लगाने के बाद वहां खड़े जहाज का रस्सा खोल कर पानी में बहा दिया। इसके बाद भीड़ मालगोदाम पर पहुंची और मालगोदाम का ताला तोड़ कर अनाज आदि को लूट लिया। शहर के चौक पर स्थित डाकघर को भी लोगों ने लूट लिया। लगातार हो रहे आंदोलन और दिनों दिन बढ़ती भीड़ से पुलिस भी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगी और चौकियों के बजाए थाने पर ही एक जगह एकत्र होकर रहने लगे। उधर, आंदोलनकारियोंं ने चितबड़ागांव स्थित पिपरा पुल को जो लकड़ी का बना था उसे फूंक दिया। शिवधनी कमकर और राजनारायण गुप्त ने चितबड़ागांव चौकी को फूंक दिया। स्वामी ओंकारनंद के नेतृत्व में बेनीमाधव सिंह, लक्ष्मी शंकर त्रिवेदी, शिवपूजन पांडेय, गफूर साहब, जनार्दन तिवारी, अभय कुमार लाल, हरिशंकर तिवारी, राजनारायण गुप्त, राजनारायण तिवारी, शिवानंद सिंह, भोजदत्त यादव, महंगू गुप्त समेत हजारों का हुजूम नरहीं थाने पर पहुंचा। थानेदार कुंवर सुंदर सिंह के सामने ही बेनी माधव सिंह ने थाने पर तिरंगा फहरा दिया और भीड़ के आदेश पर थानेदार ने तिरंगे को सलामी भी दी। रेवती में सरजू प्रसाद सिंह, नारायण मिश्र, रघुराई राम, सकलदीप सिंह, शिवपूूूूजन सिंह, रामधारी सिंह, बलराम सिंह, राम बहादुर सिंह, उमाशंकर लाल, विश्वनाथ बरई, नंद कुमार, रामकिशुन राम, पारस नाथ पांडे आदि ने जनबल के साथ बुद्धिबल का प्रयोग किया। पहले से क्षतिग्रस्त रेल पटरियों को पूरी तरह उखड़वा दिया और जगह-जगह खाई खोद कर तथा पेड़ गिरा कर सड़क संपर्क भी भंग कर दिया। इसके बाद एकाएक धावा बोल कर सहतवार थाने के रेवती पुलिस चौकी के सिपाहियों को डरा धमका कर भगा दिया, डाकघर को फूंक दिया और कानूनगो कार्यालय एवं नगर पंचायत कार्यालय के कर्मचारियों को भगा कर कब्जा कर लिया। रेवती का इलाका जिला मुख्यालय से कट गया और एक ही दिन के अभियान में आजाद हो गया। भूपनारायण सिंह आदि की अगुवाई में भीड़ बैरिया थाने पर पहुंची। भीड़ को देख थानेदार काजिम हुसैन ने थाने पर तिरंगा फहरा कर जान बचाई।
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रेवती की व्यवस्था ली हाथों में, सहतवार थाने के सिपाहियों को भगाया
बलिया। 14 अगस्त 1942 को बैरिया थाने में झंडा फहराने के बाद 14 की रात को फिर बहुआरा बजरंग आश्रम पर बैठक हुई और गंगा नदी के रास्ते पटना से बक्सर जाने वाली स्टीमर पर कब्जा का प्रोग्राम बना। प्रोग्राम के तहत 15 की सुबह सैकड़ों की संख्या में लोग खेतों में छिप गए। रोजाना की तरह ज्योंही स्टीमर आकर अपने ठहराव पर रुकी लोगों ने हमला बोल दिया और स्टीमर पर कब्जा कर तोड़फोड़ शुरू कर दी।
15 अगस्त 1942 को जिले में चहुंओर प्रदर्शन से अंग्रेज अपने को असहाय समझने लगे। रेवती में बच्चा तिवारी, सूरज प्रसाद सिंह, रघुराई राम, उमाशंकर लाल आदि नेताओं द्वारा प्रशासनिक व्यवस्था अपने हाथ ले लिया गया और यहां स्वतंत्र पंचायती व्यवस्था लागू हो गया। सहतवार थाने के सिपाहियों को भगा दिया गया कागजों पर अधिकार कर लिया गया। रेल पटरियों को उखाड़ यातायात बन्द कर दिया गया। बकुल्हा, रेवती, दलछपरा में रेल गुमटियों को तोड़ दिया गया और तारों को काट दिया गया जिसका नेतृत्व रामदीन सिंह, रामेश्वर सिंह ने किया। नगरा व नरही डाकघर पर झंडा फहराने के साथ ही डाक टिकट व लिफाफा को नष्ट कर दिया गया। ताखा, नरही और सोनपाली के पुल नष्ट कर दिए गए जिसका नेतृत्व श्री चंद्रिका, हरि गोविंद सिंह, सहदेव, गौरी आदि कर रहे थे।